राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश भैय्या जोशी ऊना मे संघ के स्वयंसेवकों को किया सम्बोधित


ऊना : आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश भैय्या जोशी ने हिमाचल प्रदेश के प्रवास पर ऊना मे संघ के स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण कों सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि देश की आजादी से पूर्व हिन्दूओं के बारे महात्मा गाँधी नें कहा था कि हिन्दू डरपोक हैं व मुसलमान उनके विपरीत हैं और स्वामी श्रद्धान्द ने कहा कि हिन्दू समाज जीवित नही रहनें वाला हैं, देखना है कि कितनी देर तक जीवित रहता है। लेकिन संघ के संस्थापक डाँ हैडगेवार इन कथनों को नकारते हुए कहा कि हिन्दू न मरेगा व न डरपोक रहेगा।
उन्होंने कहा कि सन् 1925 मे संघ की स्थापना मुसलमानों व ईसाईयों के कारण नही हुई। बल्कि हिन्दू समाज में व्याप्त दुर्गुणों को दूर करने, संगठित करने व सकारात्मक सोच सें हिन्दू जागरण से सौहार्द वातावरण बनाने के मकसद से हुई है। इसी का परिणाम है कि आज संघ अपने शताब्दी वर्ष को पूर्ण कर निरन्तर आगे बढ़ रहा है। आज देश व विदेश मे संघ ने जहां भी हिन्दू समाज है वहां अपनी पहुंच बनाई है। देश के 60 हजार गांवों मे संघ की शाखाएं है व एक लाख गावों में संघ के स्वयसेवक है। 30 लाख के करीब स्वयंसेवकों शाखाओं से जुड़े हैं। करीब डेढ़ करोड़ लोग संघ के सम्पर्क में हैं। विश्व के 45 देशों में जहां जहां भी हिन्दू है वहां संघ का काम हैं।
उन्होंने कहा कि कई लोग सोचते हैं कि संघ मे लोग खेलने के लिए आते है और खिलाड़ी बनते हैं, गीत गाकर गीतकार बनते है, भाषण करके अच्छे वक्ता बनते हैं आदि लेकिन संघ स्वयंसेवकों को हिन्दू के गुणों से युक्त एक सुशासित राष्ट्रवादी नागरिक बनाता हैं। हिन्दू को परिभाषित करते हुए कहा कि हिन्दू जीवन शैली है जो सबके भले के लिए काम करता हैं, महिलाओं को मां मानता हैं व पराया पैसा मिट्टी के समान समझता हैं। जाति भेदभाव के संदर्भ मे उन्होने कहा कि किसी को भी अवांछित व्यवहार का अधिकार नही है। जाति विशेष के बच्चों का नामकरण, तीर्थ यात्रा जाने, महापुरुषों व धार्मिक ग्रंथों पर सभी हिंदूओं का एक समान अधिकार हैं।
उन्होंने कहा कि आज वोहि देश अग्रेजी बोलते है व किक्रेट खेलते है जो अग्रजों के गुलाम रहे हैं। लेकिन आजादी के बाद भी हम लोगों की मानसिकता में देशी भाव नही आ पाया हैं। आज भी हम लोग अग्रेजी में हस्ताक्षर करते हैं व घर की नामपटिका भी अग्रेजी में लिखते हैं। इस गुलाम मानसिकता को बदलना आवश्यक हैं। अग्रेजी भाषा का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
अंत में उन्होंने कहा कि संघ की शाखा में आने से स्वयंसेवकों का आचरण समाज के लिए अनुकरणीय हो ऐसी अपेक्षा संघ के मूल सिद्धांतों के अनुरूप हो । समाज को जोड़ने व सौहार्द से शांति से राष्ट की प्रगति में भागीदार बनें।
कृत प्रचार विभाग, ऊना।

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